असहयोग आंदोलन (1 अगस्त 1920ई०)
जनता की घोर निराशा और असंतोष-: युद्ध काल में भारत राष्ट्र ने ब्रिटेन को जन और धन से भरपूर सहायता दी थी। और युद्ध में भारतीय राष्ट्रवाद को अपूर्व प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। अब भारतीय जनता स्वतंत्रता और लोकतंत्र के सफल संयोजन संजोए जाने लगे थे। लेकिन घटना ने जनता की आशा को निराशा और घोर असंतोष में बदल दिया।
रौलर एक्ट-: ब्रिटिश सरकार युद्ध काल के बाद भी आतंकवादी तत्वों पर नियंत्रण के नाम पर दमनात्मक शक्तियां अपने हाथ में बनाए रखना चाहती थी। अतः भारत के सभी वर्गों के विरोध के बावजूद रोलर कमेटी की रिपोर्ट को कानूनी रूप देते हुए रोलर एक्ट बनाया गया।
जलियांवाला हत्याकांड-: महात्मा गांधी ने रोलर एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह प्रारंभ करने का निश्चय किया। सत्याग्रह का प्रारंभ सार्वजनिक हड़ताल के माध्यम से करते हुए 30 मार्च 1919 ईस्वी को संपूर्ण देश में हड़ताल करने का निश्चय किया गया। किंतु बाद में तिथि बदलकर 6 अप्रैल कर दी गई 6 अप्रैल को सारे देश में शहर और गांव में पूर्ण और अधिकांश शांति पूर्ण हड़ताल हुई। अंग्रेजी सरकार का विरोध करने के लिए 13 अप्रैल 1919 ईस्वी को अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सार्वजनिक सभा हुई। इस सभा में सैनिक शासन के प्रमुख जनरल डायर के द्वारा अनावश्यक और अंधाधुंध गोली चलाई गई। इसमें 800 व्यक्ति मारे गए और 2000 घायल हुए।
खिलाफत आंदोलन (1920- 1921 ईस्वी)
महायुद्ध में ब्रिटिश सरकार ने भारत के मुसलमानों को टर्की के सुल्तान की स्थिति बनाए रखने के संबंध में कुछ आश्वासन दिए थे। लेकिन युद्ध के बाद ब्रिटेन ने टर्की के साथ जो सेवरे की संधि की, उसके द्वारा इन आश्वासनों को भंग कर दिया गया। इस संधि के द्वारा टर्की के सुल्तान के अधिकार छीन लिए गए। इससे टर्की के सुल्तान को अपना (धर्मगुरु) खलीफा मानने वाले भारतीय मुसलमान ब्रिटिश शासन के बहुत अधिक विरुद्ध हो गए। उन्होंने खिलाफत आंदोलन शुरू कर दिया। महात्मा गांधी ने खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया और हिंदू मुस्लिम एकता के आधार पर ब्रिटिश सरकारके विरुद्ध असहयोग आंदोलन करने का निश्चय किया।
असहयोग आंदोलन का निम्न महत्व था।
(1) आंदोलन के द्वारा साधारण जनता को निर्भरता प्रदान की गई। पहले जनता सरकार का विरोध करने में बहुत घबराती थी। जेलों से डरती थी। और आंदोलन का परिणाम यह निकला कि जनता निर्वाह हो गई और सरकार के विरुद्ध विद्रोह करने से नहीं डरने लगी। अब सार्वजनिक सभाओं में सरकार की आलोचना करना साधारण बात हो गई। और बच्चे बच्चे के मुंह से स्वराज शब्द सुनाई देने लगा।
(2) इस आंदोलन का एक लाभ यह हुआ कि जब तक आंदोलन चलता रहा ब्रिटिश सरकार जनता का पूर्ण सहयोग करने के लिए प्रयत्नशील रही। इस हेतु उसने 1919 के सुधारों को उदारतापूर्वक कार्य किया। और उदारवादियों को अपना हर तरह का सहयोग दिया।
(3) इस आंदोलन ने नेता, जनता में अपूर्व त्याग और साहस की भावना का संचार किया। अब तक देशभक्ति की राष्ट्रीयता कुछ गिने-चुने व्यक्तियों की विरासत समझी जाती थी। महात्मा गांधी और असहयोग आंदोलन के प्रभाव से यह सर्वसाधारण की संपत्ति बन गई। असहयोग आंदोलन पहला जन आंदोलन था। और इसने भारतीय जनता को अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाया।
(4) कांग्रेस ने जो रचनात्मक कार्यक्रम बनाया। उसे खादी, चरखा काटना, राष्ट्रीय शिक्षण संस्था का संचालन और विदेशी माल के बजाय स्वदेशी को अपनाना, इससे भी देश को बड़ा लाभ हुआ।
स्वराज पार्टी का गठन-: गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन की स्थगित किए जाने के बाद देशबंधु चितरंजन दास और पंडित मोतीलाल नेहरु के प्रयासों से स्वराज्य पार्टी का गठन सन 1923 ईस्वी में किया गया स्वराज्य पार्टी ने विधानसभा चुनावों में सफलता प्राप्त कर विधानसभाओं में पूछ कर ब्रिटिश सरकार के कार्यों में गतिरोध उत्पन्न करना प्रारंभ कर दिया किंतु 1925 ईस्वी में देशबंधु की मृत्यु के बाद इस पार्टी की शक्ति प्रभावहीन हो गई उन्नीस सौ तेईस चौबीस इसमें में नगर पालिका और स्थानीय निकायों का चुनाव हुआ। उसमें सी आर दास कोलकाता, विट्ठल भाई पटेल अहमदाबाद, राजेंद्र प्रसाद, पंडित जवाहरलाल नेहरू इलाहाबाद, चुने गए।
साइमन कमीशन का बहिष्कार-: 1927 ईस्वी में ब्रिटिश सरकार द्वारा, 1919 ईस्वी में किए गए सुधारों की जांच करने के लिए एक कमीशन का गठन किया गया। जो पूरी तरह अंग्रेजी कमीशन था। अर्थात इसमें किसी भारतीय प्रतिनिधि को शामिल नहीं किया गया। परिणामस्वरूप कांग्रेस द्वारा एक प्रस्ताव पास कर कमीशन के बहिष्कार का निर्णय लिया गया। 1928 ईस्वी में यह कमीशन भारत पहुंचा संपूर्ण देश में विभिन्न प्रकार से इसका विरोध किया गया। साइमन कमीशन गो- बैंक के नारे लगाए गए।
साइमन कमीशन की मुख्य बातें
(1) प्रांतों में द्वैध शासन का अंत करते हुए काफी सीमा तक उत्तरदाई शासन की स्थापना की जानी चाहिए।
(2) केंद्र में उत्तरदाई शासन को ही बनाए रखा जाना चाहिए।
(3) ब्रिटिश भारत और रियासतों के प्रतिनिधित्व में विशाल भारत की एक परिषद की स्थापना की जाए।
(4) अधिक व्यापार मताधिकार की व्यवस्था की जानी चाहिए।
(5) वर्मा को भारत उससे और सिंधु को मुंबई से पृथक कर दिया जाना चाहिए।
नेहरू रिपोर्ट
सर्वदलीय सम्मेलन में एक समिति बनाई गई जिसकी अध्यक्षता पंडित मोतीलाल नेहरु ने की थी इसीलिए इस समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट नेहरू रिपोर्ट के नाम से चर्चित हुई नेहरू रिपोर्ट की मुख्य बातें थी।
1. केंद्र और प्रांतों में पूर्ण उत्तरदाई शासन हो।
2. प्रांतों में स्वराज्य हो।
3. संप्रदायिक चुनाव पद्धति का अंत हो।
4. सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना हो।
कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन और पूर्ण स्वराज्य की मांग
पंडित मोतीलाल नेहरू द्वारा प्रेषित रिपोर्ट को ब्रिटिश सरकार द्वारा स्वीकृत कर दिए जाने के बाद 1929 में पंडित जवाहरलाल नेहरु की अध्यक्षता में लाहौर में रावी नदी के तट पर कांग्रेस का ऐतिहासिक अधिवेशन संपन्न हुआ। इस अधिवेशन में दृढ़ता के साथ पहली बार स्वराज्य आधार स्वतंत्रता के लक्ष्य प्राप्ति की घोषणा की गई। परिणाम स्वरूप 26 जनवरी 1930 ईस्वी को संपूर्ण देश में स्वराज दिवस समारोह स्वतंत
जिन्ना फार्मूला
मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने नेहरू रिपोर्ट में मुसलमानों के लिए प्रथम निर्वाचक मंडल की सुविधा ने दिए जाने के सुझाव में मुसलमानों के लिए 14 सूत्र पाठ मांगों का एक प्रपत्र जारी किया जिसकी प्रमुख बातें थी।
(1) मुसलमानों को प्रथम निर्वाचक की सुविधा दी जाए।
(2) केंद्रीय तथा प्रांतीय मंत्री मंडलों में मुसलमानों को एक तिहाई प्रतिनिधि दिया जाए।
(3) मुस्लिम बहुल प्रांतों का पुनर्गठन हो।
(4) राज्य की सभी सेवाओं में मुसलमानों के लिए पदों का आरक्षण हो।
(5) सांप्रदायिक निर्वाचन- प्रणाली को स्वीकृत किया जाए।